हमारे देश में बाल मजदूरी रोकने के लिए बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है । भारत देश के सम्बंध में कहा जाये तोे बाल मजदूरी बहुत बड़ी समस्या है। यह समस्या आज से नहीं वर्षों से चली आ रही है। कहा जाता है कि बच्चे भागवान के रूप होते है लेकिन ये बाते सिर्फ कहने और लिखने में अच्छा लगता है। जिस उम्र में बच्चों को खेलने कूदने एवं पढ़ने का समय होता है उस उम्र में उनको छेनी हथौड़ा थमा दिया जाता है। इससे बच्चों का जीवन अंधकारमय होता जा रहा है। कहने का तो सरकार बाल श्रमिक को खत्म करने की बड़े-बड़े दावे, विज्ञापन और भाषण के द्वारा करती है लेकिन यह सब सरकार के दावें फाइल में अच्छे लगते है। सरकार की घोषणांए और विज्ञापनांे के बाद भी बाल मजदूरी की संख्या दिनो दिन बढ़ती जा रहीे है इसमें सबसे ज्यादा गरीब बच्चे शोषण के शिकार हो रहे हैं। बच्चे दुकान, फैक्ट्री, ढाबों पर ज्यादा काम करते हुए देखने को मिलते है । इसके साथ बच्चिया भी दूसरे की घरों में काम करती है, जो मानवाधिकार का उल्लंघन माना जाता है। गरीब बच्चों का मानसिक शोषण हो रहा है। इसके साथ शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक हितों को प्रभावित करती है। जो बच्चे बाल मजदूरी करते है, वह मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाते है। बाल श्रमिक भारत में ही नहीं कई देशों में एक विकट समस्या के रूप में स्थापित है जिसका समाधान जरूरी है। भारत में 1986 में बाल श्रमिक निषेध और नियमन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के अनुसार बाल श्रमिक तकनीकी सलाहकार समिति नियुक्त की गई। समिति के अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चो की नियुक्ति निषेध है। भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का शोषण और अन्याय के विरूद्ध अनुच्छेद 23 और 24 को रखा गया है । अनुच्छेद 23 के अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबन्ध लगाता है और अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 साल से कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी भी फैक्ट्री या खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जायेगा। विश्व में जितने बाल श्रमिक है, उनमें सबसे ज्यादा भारत देश में है, एक अनुमान के अनुसार 50 प्रतिशत बच्चे अपने अधिकारों से वंचित है उन बच्चेा के पास न शिक्षा पहुच पा रही है न ही उनके उचित पोषण। हालांकि जो फैक्ट्री अधिनियम बना है वह भी इस बाल श्रमिक निरोधक को सुरक्षा कवच का काम करता है। लेकिन इसके विपरित आज स्थिति है, सरकारी आंकड़ो के अनुसार लगभग 2 करोड़ बाल मजदूर है, और अन्र्तराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार तो भारतीय सरकारी आंकड़ों से लगभग ढाई गुना ज्यादा 5 करोड़ बाल मजदूर है। हालाकि कहा जाये तो बच्चें अपने खेलने व पढ़ने के उम्र में कठिन काम करते है। इसके मुख्य कारण गरीबी है, साथ ही साथ जनसंख्या, सस्ती मजदूरी, शिक्षा का अभाव और कानूनों को सही जानकारी। भारत में कई जगह आर्थिक तंगी के कारण माँ बाप कुछ पैसो के लिए अपने बच्चों को ठेकेदार के हाथ भेज देते है जो अपने सुविधा के अनुसार काम करवाते है जैसे- दवा फैक्ट्री, होटल, फैक्ट्री में जो मालिक द्वारा खाना देकर मन-माने कार्य करवाते है और घंटो तक काम करवाते है। साथ ही काम देने वाला पटाखे बनाना, वेल्डिंग कार्य, माचिस , बीड़ी बनाना, सीमेंट, दवा, खदान आदि खतरनाक कार्य करवाते है। इन सब कार्य करने से बाल श्रमिक टीबी, कैंसर आदि बिमारियों के शिकार हो जाते है। आज बाल श्रमिक समाज के कलंक है, इसके खत्म करने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना चाहिए, साथ ही साथ बाल श्रमिक पूर्ण रूप से रोक लगाना चाहिए। बच्चों को उत्थान और अधिकार के लिए योजनाओ का प्रारम्भ किया जाना चाहिए। जिससे बच्चों के जीवन पर सकरात्मक प्रभाव दिखे और शिक्षा भी सभी बच्चों के लिए अनिवार्य कर देनी चाहिए, साथ में गरीबी दूर करने का उपाय भी करना चाहिए। बाल श्रमिक का समाधान तभी सम्भव होगा जब उनके अधिकार उनको दिया जाये । इसके बाद जो अपने अधिकारों से वंचित है, और उनके अधिकार उनको दिलाने के लिए समाज व सरकार को सामूहिक प्रयास करना होगा। साथ ही देश के किसी हिस्से में कोई भी बाल श्रमिक दिखे तो देश के प्रत्येक नागरिक का कत्र्तव्य है कि बाल मजदूरी का विरोध करे और उनके विरूद्ध उचित करवाई करे तथा उनके अधिकारो को दिलाने का प्रयास करे। बच्चे देश का भविष्य है, जब तक उनके अधिकारों और शिक्षा से वंचित रखा जायेगा तब तक देश के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना नही की जा सकती है। अगर देश के प्रत्येक नागरिक अपना कत्र्तव्य निभाये तो इस समस्या का समाधान पटल पर सार्थक होगी।
सुरेन्द्र मौर्य
छात्र- सीएसजेम विश्वविद्यालय कानपुर
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