आजादी का अमृत महोत्सव
तिरंगा हम भी फहराना चाहते हैं। लेकिन प्रश्न यह है कि हम इसे कहां फहरायें। हम तो दशको से सड़क किनारे बसेरा बनाकर रह रहे हैं। वह ठिकाना कब तक रहेगा यू ही रहेगा हमें भी नही पता। अब तो उसमें भी डर लगने लगा हैं, लगे भी क्यो नहीं। हाईवे किनारे जो रहते हैं। जिसे गाड़िया रौदते हुए चली जाती हैं।
अब तो बच्चे भी पूछने लगे हैं कि हम लोग कब तक सड़क किनारे रहेंगे । बचपन यही गुजरेगा? हम लोग खेल नही सकते, स्कूल नही जा सकते। यह सब सुनकर मन बहुत दुखी होता हैं। सरकार के मंत्री, मुख्यमंत्री आते है। वादा करके चले जाते हैं।
विधायक, संसद आते हैं और एक दूसरे पर आरोप लगाते है। पूर्व की सरकार के मुखिया आये। सभी से मिले। बड़ी घोषणाएं की। आश्वासन दिये कि बहुत जल्द आशियाना मिलेगा और किस्मत चमकेगी। किस्मत तो नही बदली , हां सरकार जरूर बदल गयी।
यह समस्या एनएचआई के सड़क किनारे बसे लोगो की हैं। उनका मकान नदी के कटान में बह चुका हैं। एनएचआई के किनारे बांध पर घास फूस के झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं।
वर्तमान सरकार के मुखिया पिछले साल क्षेत्र के दौरे पर आए थे और पीड़ित परिवारो से मिले औऱ आश्वासन भी दीये थे। लेकिन तब से अब तक हुआ कुछ नही अब तो पीड़ितों को आश्वासन की आदत सी बन गयी है।
कटान पीड़ित अभी भी उम्मीद लगाये हैं कि तिरंगा हम भी फहरायेंगे। लेकिन कहां? घर तो है नहीं।
लेखक
सुरेन्द्र मौर्य
छात्र- छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर