पत्रकारिता की शिक्षा प्रतिष्ठानों से अधिक बडो के मार्गदर्शन और आशीर्वाद से प्राप्त होती है

कटनी(विजयराघवगढ़) आज समाज का हर वर्ग पत्रकारिता की परिभाषा समझने लगा पत्रकार जगत को जानने समझने लगा किन्तु कभी ऐसा भी समय था जब पत्रकारों और पत्रकारिता के मायने लोगों को मालूम नही थे। मेरा भी सफर कुछ उन्हीं दिनो से प्रारम्भ हुआ विजयराघवगढ़ मे जब लोग पत्रकारिता का सही मायने नही जानते थे तब दो पत्रकार हुआ करते थे घनश्याम गुप्ता जी और बडे भाई प्रवेश मिश्रा जी। प्रवेश मिश्रा जी मेरे बडे भाई थे जिवन की शुरुआत मैने उनही के चरणों से प्रारम्भ की वह मेरे प्रेरणास्रोत है। मैने प्रवेश मिश्रा जी की पत्रकारिता से समाज को आईना दिखाने का निर्माण लिया फिर पत्रकारिता के मैदान मे जैसे ही मैने अपने कदम रहे ही थे जहा पर मुझे दो गुरु मिले अंजान अज्ञानी बालक की भाती जब मै पत्रकारिता करने लगा तो मेरा मार्गदर्शन मेरे पत्रकार गुरु घनश्याम गुप्ता जी सत्यदेव चतुर्वेदी जी ने मुझे पत्रकारिता का पाठ पढाया। उस समय न मोबाइल होता था न कम्प्यूटर सब कुछ हाथो हाथ होता था फोटो खींचते थे डार्क रुम मे प्रिंट करते थे हाथो से खबर लिखते थे फिर बस का इंतजार कर खबर को बस के माध्यम से अखबार कार्यालय तक पहुंचाते थे खबर लगी या नही इस का पता भी दूसरे दिन अखबार देख कर ही पता चलता था। अखबार और मिडिया के नाम से अधिकारीयों मे एक डर होता था एक खौफ के साए मे अधिकारी अपने कार्यो को अंजाम देते थे पत्रकारों मे एकता होती थी एक दूसरे के प्रति समर्पण होता था। इन सभी परिश्रमो के साथ पत्रकारों की जमात मे आखिर सामिल हो ही गया फिर क्या था सहयोगी साथी मिले शैलेश पाठक भवानी तिवारी वंदना तिवारी अनिल राज तिवारी विवेक शुक्ला अजय शर्मा अनुरुध बजाज रवि पांडे मनोज तिवारी आशिष सोनी जितेन्द्र खरोटे आरिफ तनवीर अंसुल बहरे रवि ठाकुर बालमिक पांडे राजा दुबे मो लईक निजाम खान आशुतोष शुक्ला विनोद दुवे गोकुल पटेल हाईकोर्ट बकील बृम्हमूर्ती तिवारी आशिष चक्रवर्ती रोहित सेन भोला बाबू अश्वनी बडगैया अमर ताम्रकार अमरजित खरे संजय खरे  आदि साथियों ने मुझ जैसे एक छोटे से तहसील गाव के लडके को अपना सहयोग और मार्गदर्शन देते हुए पत्रकार बना दिया। मैने अपना सफर गाव से सहर की ओर जब तक किया उस वक्त गाव का होने के कारण मै बहुत सिधा साधारण सा बालक हुआ कर्ता था मुझे शहर के लोग सीधा बच्चा समझ कर बहुत मारते परेशान करते थे मै परेशान था फिर एक विवाद बडे भाई प्रवेश मिश्रा जी और नगर के कुछ दवंग लोगों के बीच हुआ उस वक्त मै डरा सहमा हुआ अपने भाई की मदद के लिए लोगों के हाथ पैर जोडा किन्तु शहर के लोग हिफाजत करने की बजाय हमारे सीधे पन और मानवता का उपहास उडाने लगे। फिर क्या था एक सीधा साधा नादान बच्चा मै अपने आत्म सुरक्षा और अपने भाई के लिए खुंखार दबंगों को ठिकाने लगाने के बाद नगर के ही कुछ साथियों के साथ एकता गुट बना कर विजयराघवगढ़ के एक से एक दबंगों को गुंडा गर्दी छोडने पर मजबूर कर दिया।
*संजय सत्येंद्र पाठक ने किया मार्गदर्शन*
 उसी वक्त मेरी मुलाकात विजयराघवगढ़ विधायक संजय सत्येंद्र पाठक से हुई और उन्होंने अपने अनुभवों का पिटारा मेरे लिए खोला और पत्रकारिता के मायने समझाते हुए मुझे समाज का प्रहरी बनाया। संजय सत्येंद्र पाठक ने मुझे समझाते हुए कहा था की जरूरी नही की अधिक शिक्षा के साथ ही पत्रकारिता का आगाज किया जाए अनुभवी व्यक्तियों की सरण मे रह कर पत्रकारिता का ज्ञान लिया जा सकता है और अनुभव के साथ जो पत्रकारिता होगी वह समाज का कल्याण करेगी। इस सभी मार्गदर्शको से शिक्षा प्राप्त कर मैने पत्रकारिता की। यही कारण है की पत्रकार शब्द से ही मुझे बहुत अधिक प्यार है पत्रकार कोई भी हो कैसा भी हो अगर वह सच्चाई और समाज के हित मे पत्रकारिता कर्ता है मै उसके रास्ते के काटो को दूर करने मे अपनी जान लगाने मे कोई कसर नही छोडता मेरा पत्रकारों के प्रति एकता समर्पण ही मेरी पूजी है मेरी पत्रकारिता का प्रसाद सभी पत्रकारो का आशिर्वाद है। मैंने कभी इस बात का गुरुर नही किया की मै पत्रकार हू मैने गुरुर अपनी सेवा और अपने मार्गदर्शको पर किया है मेरे गुरु मेरे मार्गदर्शक इतने बुलंद है की इनके सामने मेरी क्या औकात मेरा कोई बजुद अगर है तो इनका आशिर्वाद है।
*जैसी आप होगे फल भी वैसा ही मिलेगा*
आज पत्रकारों मे एकता नही कोई किसी को अपना गुरु कहने को तैयार नही किसी को गुरु कहने मे शर्म महसूस होती है। एक से बढ कर एक धनुर्धर पत्रकारिता जगत मे अपना जौहर दिखा कर पत्रकारिता को कलंकित कर रहे हैं। सरेआम पत्रकारिता निलाम होती है जगह जगह चौराहो पर लात जूतो से सम्मानित होती है इसके पीछे का कारण और कुछ नही हम सबकी फूट है। फूट की बजह से आज पत्रकारों का मान सम्मान खतरे मे है। किन्तु यह बात हर किसी पत्रकार मे लागू नही आज भी जिन पत्रकारों के साथ एकता है जिनके पास बडो का मार्गदर्शन है जिनके पास हथियारों से अधिक तेज चलने वाली कलम है उनसे आज भी प्रशासन खौफ खाता है कलम की धार से निकलने वाले लहू को देख अच्छे अच्छो की पैंट गीली हो जाती है। सिर्फ इतना ध्यान रखने बाली बात है की हमे दिखावे न करे जिसका साथ दे दिल से दे विरोध मे रहे तो खुल कर रहे व्यक्तिगत विवादो को लेकर पत्रकारिता न करे पहले समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाए  जरूरतमंद को लाभ पहुचाए फिर अगर आप का फायदा होता है तो कोई गलत नही। समाज आज हम पर भरोसा कर्ता है हमसे आषा रखता है हम सभी पत्रकारो को सभी की भावनाओं का ध्यान रखते हुए बडो के मार्गदर्शन और सहयोग से समाज हित मे कार्य करना चाहिए। कौन पत्रकार कौन नही यह विवाद का विषय नही डिग्री लिए अच्छे अच्छे पत्रकारों की डिग्री चोराहो मे निलाम होते देखी गयी है समाज का जो हित कर जाए समाज के लिए जिसकी कलम आग उगले वही पत्रकार माना गया है।

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