हमारे समाज में महिलाओ के प्रति एक ऐसा अंधविश्वास चली आ रही हैं । अगर उसके बारे में कोई बात करता हैं तो उसे गलत माना जाता हैं। लेकिन जैसे जैसे सोच बदल रही हैं वैसे वैसे समाज भी बदलाव की तरफ जा रहा हैं।
हम बात कर रहे है पीरियड की यह एक प्रकृतिक बदलाव का संकेत हैं। जब पहली बार किसी लड़की को इस बदलाव से गुजरनी पड़ती हैं तो उसे हिम्मत और साहस देने की जरूरत होती हैं। लेकिन उस समय उस लड़की को परिवार अकेले छोड़ देता हैं, वह समय होता हैं समझने और समझाने का । अपने ही घर में उसे अकेले का महसूस करा देते हैं। कहा जाता हैं कि दूर रहो ये मत छूओ, कही जाओ मत । सवाल यह उठता हैं कि हम लोग अपने आप को नये युग का कहते हैं लेकिन इसी युग में पीरियड की बात करने से डरते हैं । ऐसे अवधारण बन चुकी हैं कि कभी कभी घर से निकलने से भी महिलाये डरती हैं । कि कही इस समस्या से रास्ते में गुजरना पड़ सकता है ? अगर ऐसी परिस्थिती से गुजरना पड़े तो किसी से सहायता की उम्मीद भी नही कर सकते हैं । क्येाकि इस बारे में समाज में बात करना गुनाह हैं। किसी दुकान पर सेनेटरी पैड को खरीदने के लिए घंटो इंतजार करना पडता हैं कि दुकान पर ग्राहक की भीड़ खत्म हो फिर वह सेनेटरी पैड खरीदे।
एक बार ऐसा भी हुआ हैं कि हम कालेज गये थे मेरे साथी को पढ़ाई के समय पीरियड से गुजरना पड़ा था ।उसके बाद वह परेशान थी । मेरे द्वारा पूछे जाने पर बताया गया कि आप नही समझोगे। यह लड़कियों का बीमारी हैं यह लड़की ही समझ पायेगी। लेकिन बार बार मेरे द्वार पूछने पर घूसा भरी नजरो से देखते हुए कहा कि पीरियड हुआ हैं। तब मैने कहा कि इसमे परेशानी की क्या बात हैं। यह तो सबको पता हैं यह प्राकृतिक हैं। इस पर तो फिल्म भी बन चुकी हैं। वह फिल्म तो सब लोगो ने देखे होगें और सरकार भी इस का प्रचार प्रसार करके जागरूकता कर रही हैं। कहा जाता हैं कि शहर के बच्चे सोचने समझने में बहुत आगे होते हैं और किसी भी मुद्दे पर खुलकर बात करते हैं, लेकिन इस पर आज भी अंध विश्वास कायम हैं चाहे शहर हो या गांव। पीरियड को देखने और समझने के लिए कही बाहर जाने की जरूरत नही। हर घर में इस तरह के जुड़े रूढ़िया देखने को मिल जायेगी। जो हर परिवार में सदियो से लड़किय झेल रही हैं।
इसी समाज मेa एक ऐसा परिवार हैं जो इस
अंधविश्वास की बेड़ियों को तोड़ते हुए पीरियड पर सेलिबे्रट किया। वह परिवार
उत्तराखण्ड के काशीपुर के रहने वाले जितेंन्द्र भट्ट और भावना है। जो अपनी बेटी की पीरियड शुरू होने पर केक काटकर
खुशिया मनाया। समाज को एक रूढ़िवादी परम्परा का तोड़ने का साहस किया है। और समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया हैं।
समाज में पीरियड के लेकर पहल पर केक का पहला आर्डर लेने वाले दुकनदार भी काफी खुश हुए। उसका कहना हैं कि हम उस परिवार को बधाई देता हूॅ जो पहल की शुरूआत किया। और मैं उस पहल का हिस्सा बना। जब पहली बार सुना था तो मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया फिर पूछा की संदेश में क्या लिखना हैं। तो पलट कर पिता का जबाब आया कि अपनी बेटी के पीरियड शुरू होने पर सेलिबे्रट कर रहे हैं।यह पहल लोगो को निश्चय ही सोचने पर मजबूर कर देगा।
किसी की भावनाओ का ठेस
पहुचा हो तो खेद है।
सुरेन्द्र मौर्य
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