पीपली लाइव एक फिल्म आई थी. जो किसानो के कर्ज के ऊपर बनी थी । उस फिल्म में किरदार नत्था और उसके भाई बुधिया था। लोन का पैसा वापस नही करने पर बैंक जमीन को हड़पने वाली हैं। वह एक नेता के पास जाता हैं जो वह कहता हैं कि सरकार तुम्हारी जीते जी मदद नही कर सकती हैं लेकिन आत्म हत्या करने के बाद सरकार मुआवजे के रूप में एक लाख रूपये दे सकती है। नत्था का भाई थोड़ा समझदार हैं। अपने भाई नत्था को आत्म हत्या करने के लिए राजी कर लेता हैं। ताकि उसके परिवार को सहारा मिल सके। उस प्लान की भनक मीडिया को लग जाती हैं। अचानक नत्था का घर,चर्चा का बिषय बन जाता हैं। मीडिया वाले कैमरे और माईक लेकर उसके घर के आस पास डेरा जमा लेती हैं। नत्था आत्म हत्या करेगा या नही करेगा , करेगा तो कैसे करेगा और विचार कहा से आया । मीडिया इस तरह उसके पीछे पड़कर हर गतिविधियों पर नजर रखती हैं यहां तक कि नत्था खेत में पेट साफ करने जाता हैं तो मीडिया उसके पीछे दौड़ लगा देती हैं। टीआरपी के चक्कर में मीडिया उसके मल के रंग को देखकर उसके मानसिक स्थिति का अंदाजा लगाने लगती हैं।
उनको भी नौकरी बचानी है वह क्या करे, रिर्पोटरेा के उपर से दबाव हैं कि पल पल की खबर चाहिए।
इस पर राजनीतिक शुरू हो जाती हैं ,एक पक्ष चाहता हैं कि आत्म हत्या कर ले, जिसे विरोधियो को मुद्दा मिल जाये और दूसरा पक्ष चाहता हैं कि ऐसा कदम न उठाये इसके लिए मंत्री से लेकर अधिकारी तक मनाने में लगे हैं।
मीडिया को सिर्फ टीआरपी से मतलब हैं न की नत्था से। ऐसा ही एक मामला हमारे देश में आज कल चल रहा हैं । पाकिस्तान से एक महिला प्रेमी सीमा ने तमाम सरहदो को पार करते हुए भारत में अपने प्रेमी सचिन से मिलने आती हैं, और वह भारतीय बनकर रहने लगती हैं। नत्था कि तरह इसकी भनक मीडिया को लग जाती हैं । वही मीडिया हैं जो पीपली लाइव के नत्था के पीछे पड़ी थी । सुबह शाम सीमा सीमा कर रही हैं। उस सीमा के ऊपर क्या गुजर रही हैं, इससे कोई मतलब नही हैं। उसके हर मूमेंट पर कैमरा माईक लेके पीछे पड़े हैं । अब तो हद हो गयी चैनल ने तो कार्यक्रम को दिखाने के लिए उसके घर के छत पर स्टूडियो भी लगा दिये थे, जिसे प्रशासन को रोकना पड़ा । जहां पर आपस में ही मीडिया खींचा तान में लग गयी हैं । पहले हम -पहले हम के चक्कर मेa सीमा को कोई ध्यान नही दे रहा हैं। वह कितना मांनसिक दबाव में रह रही हैं। इससे किसी को कोई मतलब नही हैं । सुबह होते ही सबसे पहले हम इंटरव्यू करे इसके लिए सीमा हैंदर और उनके परिवार सोये रहते हैं तभी दूध वाले और पेपर वाले की तरह जगाने लगते हैं । देर रात तक सोते हैं और जल्दी उठ जाते हैं । जैसे उनको कही नौकरी पर जाना हैं । मीडिया ऐसे सवाल करती हैं जैसे हमारे देश की खुफिया एजेंसी हैं । अरे भाई हमारे देश मे जांच एजेंसिया हैं तो उनको भी काम कर लेने दीजिए।
ऐसा ही चलता रहा हो सीमा
हैदर और उसके परिवार मानसिक तनाव में चले जायेगें, फिर इसका जिम्मेदार कौन होगा।
मीडिया चैनल ऐसे दावे कर
रही हैं जैसे पूरी जांच खुद ही कर ली
हैं । जानता के मन में तरह तरह के भ्रम फैला रही हैं, कि खुफिया एजेंट हैं, मकसद
से आयी हैं । साथ ही अन्त में धीरे से बोल देते हैं कि इसकी पुष्टि नही करते हैं।
हम बात कर रहे हैं दूसरी
पीपली लाइव की जो सीमा हैदर बन चुकी हैं । फिल्म में आत्म हत्या को सस्पेंस रखा
गया हैं उसी तरह से सीमा हैदर भी अभी सस्पेंस हैं कि जासूस हैं या प्रेमी, ये
तो आने वाला वक्त बतायेगा।
लेखक
सुरेन्द्र मौर्य
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